कोरोना महामारी का भारत में नियमित इम्युनाइजेशन पर क्या और कितना पड़ा प्रभाव
देश और दुनिया में नियमित रूप से चलने वाले दूसरे स्वास्थ्य अभियानों पर असर पड़ा है। इस महामारी की वजह से वर्ष 2020 से भारत में 35 लाख बच्चे अपने नियमित खुराक से चूक गए हैं। 18 माह से अधिक समय से जारी इस महामारी की वजह से बच्चों पर संकट लगातार बना हुआ है। इस बार इस डायलाग के ताजा एपिसोड का विषय था ‘पोलियो के खात्मे के लिए कोरोना महामारी से क्या ले सकते हैं सीख’। जागरण डायलाग्स के ताजा एपिसोड में जागरण न्यू मीडिया के एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रत्यूष रंजन ने कोरोना महामारी से पोलियो अभियान पर लगे ब्रेक पर और इसके प्रभाव को लेकर नेशनल प्रोफेशनल आफिसर इम्युनाइजेशन इंटेंसिफाई के डाक्टर दानिश अहमद और रोटेरी इंटरनेशनल इंडिया/नेशनल पोलियो प्लस कमेटी रोटेरी फाउंडेशन के चेयरमैन दीपक कपूर से बातचीत की है। जागरण डायलाग्स की कोविड-19 से जुड़ी सीरीज का आयोजन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर किया जा रहा है। आइए इस दौरान वर्चुअली किए गए सवालों और जवाब पर विस्तार से नजर डालते हैं।

सवाल: मि. दीपक हम सभी जानते हैं कि बच्चो के लिए पोलियो की डोज कितनी जरूरी हैं। कोरोना के कारण हुए लाकडाउन ने इस पूरे प्रोसेस को कितना प्रभावित किया और क्या इस प्रभाव का अब तक कोई आंकलन लगाया गया है। कैसे कोविड-19 महामारी ने विश्व में इस अभियन पर ब्रेक लगाया।
जवाब : मेरे हिसाब से इसके अब तक कोई स्पेसफिक आंकड़े मौजूद नहीं हैं, जिसके आधार पर हम ये बता सकें कि इतने प्रतिशत बच्चों को ये खुराक नहीं मिल सकी। लेकिन पोलियो इम्युनाइजेशन में अनुमान के मुताबिक 25-30 फीसद तक की कमी आई है। ये बेहद खतरनाक है। पास के केवल दो देश बचे हैं जैसा सब जानते हैं पाकिस्तान और अफगानिस्तान, जो हमारे पड़ोस में है और जहां पर इसके मामले भी हैं। लेकिन ये वहां से यहां आ सकता है, भले ही कोरोना महामारी की वजह से यात्रा पर प्रतिबंध लगे हैं, लेकिन यदि ये वायरस यहां पर आ जाता है तो हमारे बच्चों खासतौर पर नवजात बच्चों के लिए खतरनाक हो सकता है। जिनको इसकी खुराक घर पर नहीं मिल सकी है वो काफी वैल्युएबल हैं।
सवाल: डाक्टर दानिश यही सवाल लेकर मैं आपके पास भी आता हूं क्या कि भारत में कोरोना की वजह से लगे लाकडाउन से जो प्रभाव इस पोलियो अभियान पर पड़ा है, उसका क्या आंकलन किया गया है और विश्व में इसका क्या असर पड़ा है।
जवाब: अगर हम पिछले वर्ष की बात करें पूरे 2020 की जब लाकडाउन हुआ और काफी सारी सर्विसेज अफेक्ट हुई तो इम्युनाइजेशन पर भी इसका प्रभाव पड़ा। इसकी वजह से भारत में वर्ष 2019 के मुकाबले वर्ष 2020 में ये करीब पांच से छह फीसद तक साल का कम आया है। हालांकि भारत सरकार की तरफ से कई प्रयास किए गए जो काफी यूनीक थे, जिनकी वजह से हम जो ट्रेक कर रहे थे इम्युनाइजेशन को क्वाटर वाइज, हम देख रहे थे कि जब 2020 का दूसरा क्वाटर था और देश में लाकडाउन लगा उस वक्त इसमें अधिकतम गिरावट महसूस की गई थी। इसके बाद कई प्रयास किए गए इम्युनाइजेशन को एसेंशियल हैल्थ सर्विस के साथ जोड़ा गया और भारत सरकार की तरफ से राज्यों को निर्देश दिया गया कि ये एसेंशियल सर्विस है, इसलिए ये कंटिन्यू होनी चाहिए। इसके अलावा कई दूसरे प्रयास किए गए कि जब हम इम्युनाइजेशन करते हैं तो वहां पर कोविड-19 का खतरा न हो, तो उसके कोविड प्रोटोकोल को फालो करते हुए इम्युनाइजेशन की गाइडलाइंस भारत सरकार द्वारा जारी की गईं। साथ ही ईमोबिलाइजेशन को कैसे इफेक्टिव बनाएं जिससे कोविड का खतरा न आए तो छोटे-छोटे ग्रुप में बच्चों को घर से बुलाकर वैक्सीनेट किया गया। भीड़ को अवाएड किया गया इंफेक्शन प्रिवेंशंस के उपायों को अपनाया गया। इसके अलावा मिशन इंद्रधनुष किया गया। पोलियो के लिए खासतौर पर जो हमारा पल्स पोलियो अभियान है कोविड के बीच में भी वो करवाया गया। इसका एक असर हमें ये देखने को मिला कि जो दूसरे क्वाटर में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई थी थर्ड और फोर्थ क्वाटर में वो सामान्य हो गया था। 2020 के शुरुआती क्वाटर में जो हम इम्युनाइजेशन कवरेज जो हम डीपीथ्री से मापते हैं कि वो हमारा 101 फीसद रहा, जो हमने पहले कभी एचीव नहीं किया था। इसकी वजह से हम काफी छोटे बच्चों को कवर कर पाए। कुछ अब भी छूटे हैं जिसके लिए प्रयास लगातार जारी है। जल्द ही हम उन बच्चों तक भी पहुंच पाएंगे।
सवाल: डा. दानिश अगला सवाल भी आपसे ही पूछते हैं कि डब्ल्यूएच के स्ट्रेटेजिक एडवाइजरी ग्रुप आफ एक्सपर्ट आन इम्युनाइजेशन की पोलियो वायरस को इनएक्टिव करने के लिए दो खुराक देने की सलाह दी गई है। दुनिया को पोलयो मुक्त बनाने में आईपीवी को लेकर और ये कैसे मददगार हो सकता है
जवाब: जब हमने 2015-16 में स्विच किया था ट्राइबल एंड टोरल पोलियो से बाइबल एन पोलियो वैक्सीन यूज करने लगे। इसमें एक टाइप टू किस्म का वायरस हटा दिया गया था जिससे उसके खतरे से हम प्रोटेक्ट रहें। उसी वक्त ये रिकमंडेशन थीं कि आईपीवी को इसमें शामिल किया जाए। उसी समय भारत में ये प्रयोग भी शुरू हो गया था। 2015 में हमने आईपीवी प्रोड्यूज की और 2016 में ये पूरे देश में लागू भी कर दी गई थी। डब्ल्यूएचओ के स्ट्रेटेजिक एडवाइजरी ग्रुप की रिकमंडेशन है कि आप दो खुराक आईपीवी के साथ में ओपीवी की डोज दें। भारत इसको वर्ष 2016 से ही फालो कर रहा है। भारत में इसकी खुराक छह सप्ताह और दूसरी 14 सप्ताह पर दी जाती है। दूसरे देशों में जहां आईपीवी का इश्यू था इसलिए वो इसको लागू नहीं कर सके। लेकिन ग्रेज्वली वो धीरे-धीरे इस तरफ बढ़ चुके हैं। वर्ष 2019 तक सभी देश आईपीवी की दो खुराक अपने यहां पर लागू कर चुके हैं।
सवाल: मि. कपूर इस्टेब्लिश इम्युनाइजेशन हर बच्चे के लिए एक अधिकार माना जाना चाहिए। इस दिशा में आपके या रोटेरी फाउंडेशन की तरफ से क्या कोई सलाह या उपाय है
जवाब: मेरे विचार में पोलियो दो किस्म का है। नंबर वन वाइल्ड पोलियो वायरस जिसके केवल दो मामले पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सामने आए हैं। दूसरी तरह के पोलियो के मामले वहां पर समने आए हैं जहां पर इम्युनाइजेशन में कमी आई है। इसके मामले सेंट्रल अफ्रीका,अफगानिस्तान और पाकिस्तान में सामने आए हैं। इसके खिलाफ जो दवा बनाई गई है उसको हम नोबल ओपीटी2 के नाम से जानते हैं। इसका फायदा ये है कि इससे वैक्सीन डिजाइन पोलियो नहीं हो सकता है। भारत में ये जरूरी है कि हर बच्चे को इम्युनाइज किया जा सके। ऐसा करके हम उन्हें हर खतरे से बचा सकते हैं।
सवाल: आखिरी दो सवाल दानिश आपसे, डाक्टर दानिश आपसे स्कूल अब खुलने शुरू हो चुके हैं। ऐसे में वैक्सीन प्रिवेंटेबल डिजीजेज जैसे खसरा, डेप्थेरिया और इस तरह की दूसरी बीमारियों की वैक्सीन के लिए जागरुकता बढ़ाने की दिशा में कदम उठाने कितने जरूरी हैं और आपकी या विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से इस बारे में क्या सुझाव हैं।
जवाब: पिछले 18 माह से स्कूल बंद हैं। हमने ये महसूस किया है कि हमारे यहां पर इन बीमारियों के मामले कम हुए हैं। इसकी वजह ये है कि जब बच्चे एक दूसरे के संपर्क में नहीं आ रहे हैं, घुलमिल नहीं रहे हैं। इसके अलावा हमारा हैल्थ सिटिंग बिहेवियर और पर्सनल हाइजीन बिहेवियर भी बदला है। हमने कोविड प्रोटोकाल को अपनाया है जिसमें हैल्थ हाईजीन और सफाई वगैरह का ध्यान रखा गया है। हमारा इम्युनाइजेशन जो 5-6 फीसद तक गिरा है, इसके चलते हम ये महसूस करते हैं कि वैक्सीन प्रिवेंटेबल डिजीज ज्यादा होंगी, उनका आंकलन नहीं हो सका है। इसकी वजह हमारे व्यवहार में बदलाव आना है। हम इस व्यवहार को आगे भी जारी रखें, जो इसका एक पार्ट है। दूसरा है कि हमारे बच्चे वैक्सीन लेने के लिए इलेजिबल हैं अगर उनका टीकाकरण पूरा नहीं हुआ है, ये सभी की जिम्मेदारी है, जो सभी के साथ मिलकर ही संभव हो सकता है। ये पैरेंट्स की भी जिम्मेदारी है कि वो अपने बच्चों का टीकाकरण समय से करवाएं। स्कूल की भी ये जिम्मेदारी है। इसके अलावा हमनें जो महामारी में सीखा है, उसको आगे बढ़ाते हुए टीकाकरण और हैल्थ सर्विस के नजदीक आएं। यदि हमारे किसी भी बच्चे को फीवर है उसको हम बाहर नहीं भेजते हैं। इसी तरह से यदि हमारे किसी बच्चे को मिसेल्स की परेशानी लग रही है तो उसको हैल्थ सेंटर पर ले जाकर और जांच कराएं और आइसोलेट करें। इन सभी प्रयासों को को एक साथ लेकर चलने से हमारी वैक्सीन प्रिवेंटेबल डिजीज का खतरा भी कम होगा।
सवाल: मि. दीपक आपका इस क्या कहना है कि कि इस जागरुकता को कैसे बढ़ाया जाए। इसके लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिएं।
जवाब: इसके लिए हमें सबक सीखना होगा। हमें सही जानकारी को लोगों तक पहुंचाना होगा। सरकार के साथ मिलकर हमनें यूपी और बिहार में उलेमाओं की कमेटी बनाकर पोलियो की दवा के खिलाफ जो एक सोच थी उसको कम किया गया। सभी धार्मिक नेताओं को अपने लोगों को ये बताना होगा कि ये उनकी सबसे बड़ी ड्यूटी है कि वो इसको लेकर जागरुक करें। यदि इस सोच के साथ काम किया जाएगा तो निश्चित तौर पर वैक्सीन हैजीस्टेंसी को और अधिक कम किया जा सकेगा।